Thursday 4 July 2013

अमावस से पुकार 

अमावस की काली रातों में
जीवन तलाश रहा  हूँ
उम्मीद मन में  लगाये
कोई रौशनी की किरण
चाहे दूर हो या पास
जो छु ले तन को
जो मन को टटोल दे
जो इस कमजोर शरीर में
जान की खुशबु डाल दे
जो फिर से मन को समझा दे
जो फिर से कानों को बोल जाये
जो सागर की लहरों की तरह आये
और तन को छुकर मोहित कर दे
जो पर्वत की तरह कठोर हो
पर मन माताओं जैसी कोमल 
जो फूलों से चुराकर
खुशबु मुझपर बरसा दे
जिसकी धार तलवार जैसी हो
पर अहिंसा से प्रेम करती हो
जिसमे नीम सा तीतापन क्यों ना हो
पर जरुरत में दवा बन जाती हो
जिसमे पीतल से भी कम चमक ही हो 
पर मेरे भाग्य को चमका सकती हो 
जो बच्चों जैसी चंचल क्यूँ ना हो
मुझे धैर्यवान बना सकती हो
जिसे अपने ऊपर गर्व हो तो क्या
मुझे झुकना सिखा सकती हो
यही एक छोटी सी बिनती है मेरी
एक ऐसी ही किरण की तलाश है
इस अमावास की काली रातों में !!! 

Note: It is for the first time I am trying my hand at writing poem. It took me nearly 4 hours to write this short poem. 

4 comments:

Unknown said...

lage raho nitya bhai

Akhil Yadav said...

mujhe bhi aise hi kiran ki talash hai!!!

Venktesh pandey said...

Its excellent bhai.. :)
Office ke computer pe font bhi maast dikh rha hai :D

Unknown said...

अतिसुंदर!! :-) \m/