Monday 5 September 2016

मेरे गुरु

हे गुरु, आपको मेरा प्रणाम
मेरे नमन को स्वीकारें !
मुझे अपना शिष्य मानकर
मुझपर अपनी कृपा बरसायें !!

आपके ज्ञान ज्योति के बिना 
मैं इस जीवन के कोलाहल को 
कैसे समझूँ ?
आपके मार्ग दर्शन के बिना 
मैं इस दुनिया के सच को 
कैसे मान लूँ ?

आपके जीने की राह
मेरी राह बन चुकी है !
आपके शब्द की प्रवाह
मेरे लिए प्रकाश बन चुकी है !!

  मैं जानता हूँ की मैं अर्जुन नहीं, 
मैं एकलव्य भी नहीं !
पर हे गुरु,
आप ही हो मेरे कृष्ण 
आप ही मेरे द्रोण !!


मैं भीष्म सा प्रतिज्ञाबद्ध तो नहीं
और नाही मैं कर्ण सा दानवीर !
पर मेरी अहँकार और अज्ञानता
के विरुद्ध,
आप ही हो मेरे परशुराम !!
अंत में मैं और क्या कहूँ 
सिवाय इसके, की हे गुरु !
इस असहाय स्थिति मैं 
आप ही हो मेरे मार्गदर्शक !!

P.S: Please read this extremely slowly and not like an article (in one go). Thank You.