Thursday 3 January 2019

ब्याह का रिश्ता

22 अक्टूबर 1991 - मधुबनी के अरेर बिशनपुर गांव में एक परिवार में बेटी ने जन्म लिया। बेटी की किलकारी सुनकर घर में खुशी का माहौल गूँज उठा। पापा, चाचा और अन्य सभी रिश्तेदार मिठाई खिलाकर पूरे गांव वालों से बेटी की लम्बी उम्र की कामना कर रहे थे। माँ बेटी को सीने से लगाकर कह रही थी - देखो, घर में लक्ष्मी आयी है। माँ की बात को सुनकर पिता ने बेटी का नाम लक्ष्मी रखने का फैसला भी तुरंत ले लिया। दादी की सहमति भी मिल गयी। 

लक्ष्मी को खूब लाड दुलार से रखा जाने लगा। समय बीतता गया। लक्ष्मी की पढ़ने लिखने की उम्र भी आ गयी थी। घर में गरीबी का साया भी था। पापा खेत में मज़दूरी करते थे। माँ को सिलाई आती थी। पर सिलाई मशीन न होने से आमदनी नहीं हो पाती थी। जो पैसा सिलाई मशीन के लिए माँ ने जुटाया था, अब उसी से बेटी को पढ़ाने का फैसला लिया गया। 

गांव के एक स्कूल में लक्ष्मी को दाखिल करवाया गया। लक्ष्मी मानो सरस्वती की छवि हो। बुद्धि और ज्ञान से भरपूर लक्ष्मी ने स्कूल में हर कक्षा में सफलता प्राप्त कर ली। लक्ष्मी अब बारहवीं कक्षा में दाखिला ले चुकी थी। 

मोबाइल का युग आ गया था। अन्य छात्र-छात्रा की तरह लक्ष्मी का ध्यान भी उस मोबाइल पर रोज़ पंहुच जाता था जो स्कूल के शिक्षक महोदय के पास था। लक्ष्मी अपने सीट से उठ-उठ कर शिक्षक महोदय के पास जो मोबाइल था उसको देखने की कोशिश करती रहती थी। शिक्षक महोदय को इस बात का आभास भी हो चुका था। 

एक दिन लक्ष्मी ने बहुत हिम्मत जुटाकर शिक्षक महोदय से मोबाइल दिखाने की प्रार्थना की। शिक्षक महोदय लक्ष्मी को एक होनहार छात्रा समझते थे। उन्होंने लक्ष्मी की बात मान कर अपना मोबाइल लक्ष्मी को दे  दिया। लक्ष्मी के हाथ काँप रहे थे, मानो उसके सारे सपने सच हो गए हो। लक्ष्मी की नज़र एक न्यूज़ चैनल की महिला जॉर्नलिस्ट पर पड़ी। लक्ष्मी उस जर्नलिस्ट को देख काफी मोटीवेट हुई। 

स्कूल से घर जाते वक़्त लक्ष्मी को वही मोबाइल और उस जर्नलिस्ट की छवि दिखाई दे रही थी। हो भी क्यों ना, लक्ष्मी पहली बार किसी महिला को इतनी कॉन्फिडेंस के साथ बोलते हुए जो देखा था। लक्ष्मी ने मन ही मन एक जर्नलिस्ट बनने का सपना भी साध लिया। 

घर पहुंच कर लक्ष्मी काफी सोच-विचार कर उस फैसले को आयाम देने की रणनीति भी सोचने लगी। रात हो गयी। घर के सभी सदस्य खाने के लिए बैठे थे। लक्ष्मी ने अपनी मन की बात को व्यक्त करने की प्रार्थना की। 

पापा बोले- "क्या बात है बेटी, कोई परेशानी है?" लक्ष्मी बताने लगी- "पापा, आज मैंने एक महिला को टीवी पर बोलते हुए सुना। मुझे उनको देख बहुत अच्छा लगा। मैं चाहती हूँ की मैं भी उसी महिला की तरह एक दिन टीवी पर बोलूं।" माँ तो खुशी से फूले न समायी। पर पापा के चेहरे पर खुशी दिखाई नहीं दी। पापा शायद समाज के नियम से ज़्यादा वाक़िफ थे। 

बावजुद उसके पापा ने लक्ष्मी और माँ के हाँ में हाँ भर दी। पर पापा के चेहरे का रंग कुछ उतरा हुआ लग रहा था। लक्ष्मी इस बात से बेफिक्र थी। उसे तो सबकी  सहमति मिल गयी थी। लक्ष्मी ने पुरे मन से अपने लक्ष्य को भेदने की तैयारी करने लगी। शिक्षक महोदय को भी यह बात बड़ी जची। उन्होंने लक्ष्मी को हर तरह की मदद देने का निर्णय भी ले लिया। 

लक्ष्मी अब ग्रेजुएशन में दाखिला ले चुकी थी। उधर किसानी करते करते पापा की उम्र भी बढ़ती जा रही थी। तबियत भी कुछ ठीक नहीं रहती थी। आमदनी से कोई बचत भी नहीं होती थी। किसानी से जो आमदनी होती थी वो लक्ष्मी की पढाई में और घर के अन्य जरूरतों में लगा दिया जाता था। इन सबके बीच पापा को मन ही मन एक बात खाये जा रही थी  "लक्ष्मी की शादी के लिए दहेज़ कहाँ से लाऊंगा?" 

लक्ष्मी एक होनहार छात्रा थी। यह बात गांव में सभी को पता थी। उसी गांव के एक महोदय लक्ष्मी के ग्रेजुएशन कॉलेज में प्रोफेसर थे। उनका नाम मोहन रघुवीर था। प्रोफेसर रघुवीर बहुत ही चर्चित व्यक्ति थे। क्योंकि समाज में वही सबसे ज्यादा पढ़े लिखे थे। सभी उनको बहुत सम्मान देते थे। प्रोफेसर रघुवीर लक्ष्मी की लगन देख बहुत प्रभावित हुए। वह लक्ष्मी को मन ही मन अपनी बहु बनाने की कल्पना करने लगे। 

प्रोफेसर रघुवीर ने अपनी धर्मपत्नी से भी इस बात की चर्चा की। धर्मपत्नी को यह बात बहुत अच्छी लगी। उन्होंने तुरंत हाँ भर दी। प्रोफेसर रघुवीर लक्ष्मी की पापा से यह बात चर्चा करना चाहते थे। कई महीने बीत गए। मुलाक़ात नहीं हुई। 

अब प्रोफेसर महोदय ने उनके घर जाने का ही फैसला लिया। प्रोफेसर किसान के घर जाकर अपना प्रस्ताव  रख दिया। लक्ष्मी के पापा को इस बात की इतने खुशी हुई मानो उनको दूसरा जीवन मिल गया हो। हो भी क्यों ना। प्रोफेसर ने दहेज़ लेने से जो मना कर दिया था।  

उसी रात घर में सब एक साथ खाने बैठे थे। तभी यह बात पापा ने सबको बतायी। चाचा चची ताऊ सभी बहुत खुश हुए। सब यही कह रहे थे- "लक्ष्मी किस्मत की बढ़ी तेज़ है। इतना अच्छा रिश्ता तो किस्मत वालों को ही मिलता है।" 

पर किसी ने लक्ष्मी से सहमति भी नहीं ली। लक्ष्मी चुपचाप अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गयी। आँखों में आँसू और मन में टूटे हुए सपनों की बात सोचकर एक कोलाहल सा था। लक्ष्मी इस बात को अच्छे से समझती थी की व्याह के बाद कोई उसे पढ़ने और टीवी पर आने की अनुमति नहीं देगा। 

सुबह उठ लक्ष्मी घर के काम करने लगी। उसके चेहरे की मानो रौनक सी उतर गयी हो। माँ से बेहतर इस बात को कौन समझ सकता था। माँ की आँखों में भी आंसू की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी। लक्ष्मी पापा को देख अपने भारी स्वर में बोली- "पापा, मुझे जर्नलिस्ट बनना है।" पापा ने जवाब में कहा- "ब्याह की तैयारी करो।"