हे गुरु, आपको मेरा प्रणाम
मेरे नमन को स्वीकारें !
मुझे अपना शिष्य मानकर
मुझपर अपनी कृपा बरसायें !!
आपके जीने की राह
मेरी राह बन चुकी है !
आपके शब्द की प्रवाह
मेरे लिए प्रकाश बन चुकी है !!
मैं भीष्म सा प्रतिज्ञाबद्ध तो नहीं
और नाही मैं कर्ण सा दानवीर !
पर मेरी अहँकार और अज्ञानता
के विरुद्ध,
आप ही हो मेरे परशुराम !!
मेरे नमन को स्वीकारें !
मुझे अपना शिष्य मानकर
मुझपर अपनी कृपा बरसायें !!
आपके ज्ञान ज्योति के बिना
मैं इस जीवन के कोलाहल को
कैसे समझूँ ?
आपके मार्ग दर्शन के बिना
मैं इस दुनिया के सच को
कैसे मान लूँ ?
आपके जीने की राह
मेरी राह बन चुकी है !
आपके शब्द की प्रवाह
मेरे लिए प्रकाश बन चुकी है !!
मैं जानता हूँ की मैं अर्जुन नहीं,
मैं एकलव्य भी नहीं !
पर हे गुरु,
आप ही हो मेरे कृष्ण
आप ही मेरे द्रोण !!
और नाही मैं कर्ण सा दानवीर !
पर मेरी अहँकार और अज्ञानता
के विरुद्ध,
आप ही हो मेरे परशुराम !!
अंत में मैं और क्या कहूँ
सिवाय इसके, की हे गुरु !
इस असहाय स्थिति मैं
आप ही हो मेरे मार्गदर्शक !!
P.S: Please read this extremely slowly and not like an article (in one go). Thank You.
1 comment:
utli chaapu..
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